Monday, December 31, 2012

"यत्र नरियस्तु पूजयन्ते "


 "यत्र नरियस्तु पूजयन्ते "

ना चैत है न आश्विन ,
फिर क्यों माँ तुम याद आई
शायद इस लिए कि
शर्मसार देश ने एक बेटी को,
 दी है अंतिम विदाई
देश ने शायद अपना फ़र्ज़ ही निभाया
 पर क्या हमने उस बेटी का क़र्ज़ चुकाया
जो जूझती रही घंटो गुंडों से,
तेरह  दिन मौत के  फंदों से
हम तो चुपचाप ऐसी घटनाओ पर
मोमबत्तियां जलाते रहेंगे
और मानवता के दुश्मनों को
रोटियां खिलाते  रहेंगे
माँ क्या अपनी कुंवारियों की रक्षा के लिए
तुम एकबार फिर खुद नहीं आओगी
क्या  रक्तबीज की तरह पनप रहे  इन दरिंदो को
सबक नहीं सिखाओगी
अब चैत  और आश्विन की छोर माँ
हर बस, हर ट्रेन, हर सड़क पर तू आजा
और देश को "यत्र नरियस्तु पूजयन्ते " का
सही अर्थ बता जा                                  

ओ .पी .

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