बाँझ क्या जाने प्रसूति की पीड़ा
इसे सभी जानते और मानते हैं
क्या किसी प्रसूति ने बाँझ की पीड़ा को जाना है
नौ माह तक गर्व मैं रखने के बाद
प्रसूति की पीड़ा सहने के बाद
मात्रित्व का आनंद भी प्रसूति ही पाती हैं
बाँझ तो पर्भु के शाप को हर पल झेलती और
उसके ताप में जलती है
क्या बाँझ को बाँझ कहने वाले या
बाँझ क्या जाने प्रसूति की पीड़ा
का राग दोहराने वाले ने
कभी इसका ख्याल भी किया है
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