अपने ही घर में, अपने लिए,
जगह ढूंढता रह गया।
जिंदगी को जीने की,
एक वजह ढूंढता गया।
हम उस पाषण से गए,
जिससे होती है सबको, एक छत की आस।
पर तन्हाई बनता उसका साथी,
उसका छत बना खुला आकाश।
शायद सांसों के साथ ही खत्म हो,
अपनी उम्मीद, चाहत और आस।
तुम तो सब देखते हो, जानते हो ,
आने पर पास बुझओगे न मेरी प्यास।
ओ ० पी ०
जगह ढूंढता रह गया।
जिंदगी को जीने की,
एक वजह ढूंढता गया।
हम उस पाषण से गए,
जिससे होती है सबको, एक छत की आस। पर तन्हाई बनता उसका साथी,
उसका छत बना खुला आकाश।
शायद सांसों के साथ ही खत्म हो,
अपनी उम्मीद, चाहत और आस।
तुम तो सब देखते हो, जानते हो ,
आने पर पास बुझओगे न मेरी प्यास।
ओ ० पी ०