जीवन का करार
नये साल का गुबार सब निकल गया,
खुशी और खुमार सब निकल गया
फिर से वही बेमानी ज़िंदगी है
जिसमे न कोई zeal है ना feel है
अब होली का करना होगा इंतज़ार
शायद उसके रंगो मे खुशी हो शुमार
नहीं तो फिर दीवाली के दीप मे खुशी ढुढ़नी होगी
वरना फिर नए साल पर ही खुशी का हो दीदार
ऐसे ही ही कलेंडर के पलटते पन्नो मे
रह जाता है एक कामन मेन के जीवन का करार
ओ॰ पी॰
खुशी और खुमार सब निकल गया
फिर से वही बेमानी ज़िंदगी है
जिसमे न कोई zeal है ना feel है
अब होली का करना होगा इंतज़ार
शायद उसके रंगो मे खुशी हो शुमार
नहीं तो फिर दीवाली के दीप मे खुशी ढुढ़नी होगी
वरना फिर नए साल पर ही खुशी का हो दीदार
ऐसे ही ही कलेंडर के पलटते पन्नो मे
रह जाता है एक कामन मेन के जीवन का करार
ओ॰ पी॰